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यह भी एक संयोग ही है कि मैं, मुश्ताक खान और डॉ. विजय चावला एक साथ ग्वलियर के ललित कला संस्थान में पढ़े, प्रसिद्ध चित्रकार स्व. जे. स्वामीनाथन के मार्गदर्शन में भारत भवन, भोपाल से जुड़े, लम्बे समय तक सर्वे-डॉक्यूमेंटेशन के प्रोजेक्ट्स साथ किए और अब एक साथ मिलकर ही अपने अध्ययन को पुस्तक रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। विजय अपनी पीएच.डी. के अंतर्गत संकलित किए गए बैगा एवं गोंड आदिवासियों की पारंपरिक कला को उसके ऐतिहासिक एवं मिथकीय संदर्भ में विस्तारित कर रहे हैं, तो मेरे द्वारा सन् १९८२ से आज तक, इन दोनों समुदायों में विकसित उनकी समसामयिक कला का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।
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इस प्रकार, मध्य प्रदेश की गोंड-बैगा आदिवासी कला में पिछले चालीस वर्षों में हुए बहुआयामी विकास का सम्यक विवरण इस पुस्तक के माध्यम से उपलब्ध करने के प्रयास किये गए हैं।
जहाँ एक ओर विजय ने पीएच.डी. के बाद मध्य प्रदेश हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास निगम, भोपाल तथा विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के लिए शिल्प कला में डिज़ाइन डेवलपमेंट के प्रोजेक्ट आरम्भ किये, वहीं दूसरी ओर मैंने रूपंकर-भारत भवन, भोपाल में शोध अधिकारी एवं अभिलेखागार प्रभारी के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान की। तदोपरांत राष्ट्रीय शिल्प संग्रहालय, नई दिल्ली में उप-निदेशक के पद पर कार्यरत रहा।